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आदमी अहंकार से पतन को प्राप्त होता है, आप सिर्फ अहंकार को तज दें, तब देखें कि आपका सारा तनाव काफुर, आप हल्के हो जायेंगे, मन भारी रहेगा ही नहीं
प्रतापगढ़। शहर के नरसिंह घाट पर श्री मद्भागवत कथा का आयोजन किया जा रहा है जिसमें
कदंब ऋषि के वृतांत को गति देते हुए स्वामी ने बताया कि कृष्ण ने उनसे कहा, है मुनीवर आप देवहुती के साथ विवाह की स्वीकृति दे देना, तब में अपनी संपूर्ण कलाओं के साथ आपके शरीर में प्रवेश कर आपके वीर्य के जरिए आपकी पत्नी के गर्भ में प्रवेश कर आपके भावी पुत्र कपिलमूनी की शक्ल में जन्म लूंगा। साथ ही एक विमान से पृथ्वी के एकछत्र सम्राट मनु महाराज, सतरूपा, देवहुती और साम्यक के आगमन और फिर देवभूति से कदंब के विवाह, विवाह पर कदंब की एक पुत्र के जन्म के बाद सन्यास की शर्त और फिर देवहूति के साथ विवाहोप्रांत नौ पुत्रियों के जन्म लेने, देवहूति के अपने पति के इंतजार में हजार वर्ष रह कर उसके सुंदर घने केशों के जटाओं में परिवर्तित हो जाने, नौ पुत्रियों के बाद कपिलमुनी के जन्म तक का संपूर्ण ब्योरा स्वामी ने चलचित्र के परदे की मानिंद प्रबुद्ध भक्त श्रोताओं के नयनों के समक्ष लाइव टेलीकास्ट के भांति अंकित, दृष्यांकित करके रख दिया। स्वामी ने इसी वृत्तांत के मध्य पति पत्नी को एक दूसरे के भावना का सम्मान करने की सीख देते हुए कहा कि इस पवित्र और सृष्टि को गतिमान बनाए रखने वाले रिश्ते में मनमानी को हरगिज जगह न दें, क्योंकि जहां मनमानी वहां परेशानी, तनाव और अंत में अलगाव, तलाक। आपने पुरुषों के लिए एक खास साधना बताई कि अब से आप सभी पुरुष अपनी पत्नी को छोड़ कर हरेक स्त्री, बालिका, युवती को देवी के रूप में देखें, उन्हें देवी तुल्य मान कर उनका सम्मान करें। एक साइंस रिसर्च का हवाला देते हुए आपने बताया कि आज भारत के आगरा, जयपुर, बंगलौर, दिल्ली, कोलकाता, मुंबई के पागलखानों में भर्ती पागलों में से 80 प्रतिशत पुरुष हैं स्त्रियां सिर्फ 20 या 25 प्रतिशत ही वहां हैं, क्योंकि नारी चुपके चुपके आपने अपने अंतर्मन के दुःख को आंसुओं में बहा देती है, जबकि पुरुष रोने में कायरता समझा करता है, विज्ञान कहता है कि आदमी को तनाव रहित और नेत्रों की स्वच्छता के लिए एक दिन में एक बार रो लेना चाहिए। देवहूति से कदंब की पुत्रियों अनुसूया के ऋषि अत्रि के साथ विवाह और अरुंधती के ऋषि वशिष्ठ सन विवाह, फिर कदंब के सन्यास और अपने ही पुत्र कपिल को नारायण का स्वरूप जान लेने के बाद भी माता देवहूति द्वारा उनसे इन्द्रियों को वश में करने का ये उपाय जानने कि आदमी की सांसारिक सुख, रिश्ते, संपदा आदि से असक्ति ही इंद्री दमन और संसार की चिंता से मुक्ति के लिए साधना के उपाय, बगैर किसी शर्त के निर्मलता, सादगी से जीने, परहित करने आदि के जो सूत्र महर्षि कपिल ने अपनी माता देवहूति को दिए थे उन के साथ साथ दक्ष प्रजापति के समस्त प्रजापतियों के अध्यक्ष चुने जाने पर सत्ता और पद के मद में अपने दामाद भगवान शिव का अपमान करने, सती पार्वती के बगैर निमंत्रण अपने पिता के बृहस्पति यज्ञ में जाने और वहां पार्वती के अपमानित होने के सारे वृत्तांत के साथ ही विद्वान विद्या वाचस्पति स्वामी सत्यानंद ने आगे बताया कि आदमी मनुष्य की बनाई मूर्ति के समक्ष तो सर झुकाता है लेकिन परमात्मा के बनाए इंसान की बेइज्जती करता है,जबकि मानव में प्रभु ने प्राण फूंके हैं, ये तथ्य श्री मद भागवत के तीसरे स्कंद के 21 वें से लेकर 29, वें श्लोक तक इसी आशय का कथन है कि आदमी से, पशु पक्षी , जीव जंतु और वृक्षों से आदमी को प्रेम करना चाहिए। कथा के मध्य आपने अपने सर्वप्रिय शिष्य स्व. शिव नारायण शर्मा की उनके प्रति अगाध श्रद्धा, उनकी सरलता, उनके प्रेम की अति भावुकता के साथ तारीफ करते हुए अपने अन्य शिष्य सनातन धर्म के प्रतापगढ़ के स्तंभ ओम प्रकाश ओझा,बृजमोहन राठी, अशोक सुथार अरनोद, स्व. जगजीत सिंह और उनकी पत्नी पुष्पा , बलराम माहेश्वरी, डॉक्टर जीपी पचोरीके साथ साथ प्रतापगढ़ के समस्त सनातन भक्तों की सेवा, श्रृद्धा भावना को जी भर कर सराहा । मंच संचालन सुधीर वोरा द्वारा किया गया।
