प्रतापगढ़। इफको द्वारा नैनो उर्वरकों जैसे नैनो यूरिया, नैनो डीएपी के प्रचार प्रसार के लिए गांव – गांव पब्लिसिटी वेन चलाई जा रही है ताकि नैनो उर्वरकों की तकनीकी जानकारी किसानों तक पहुंच सके l इसी उपलक्ष्य में सलामगढ़ वृहद बहुउद्देशीय सहकारी समिति में क्षेत्रीय अधिकारी निलेश लववंशी द्वारा किसानों को नैनो उर्वरको – नैनो डीएपी नैनो यूरिया की जानकारी देते हुए नैनो डीएपी से बीज उपचार की विधि बताते हुए नैनो डीएपी का सजीव ट्रे ट्रायल समिति पर किया गया l
नैनो डीएपी नैनो तकनीक से बना फास्फोरस का माध्यम है ,जिसके द्वारा बुवाई के पूर्व फसलों के बीजों का उपचार कर ( 5मिली लीटर प्रति किलो बीज) परम्परागत सब्सिडाइज्ड उर्वरकों जैसे डीएपी की मात्रा को 25 से 50 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है l
नैनो डीएपी से उपचारित से कही लाभ है जैसे कि
1) फसल में अंकुरण भी जल्दी एवं ज्यादा मात्रा में होता है,
2)परम्परागत उर्वरकों की मात्रा कम (25 से 50 फीसदी) करने से अप्रत्यक्ष रूप से लागत में कमी आती है l
3)मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार होता है
4) सरकार की योजना पीएम प्रणाम (पीएम प्रणाम यानी कृषि प्रबंधन हेतु वैकल्पिक पोषक तत्त्वों का संवर्द्धन)को बढ़ावा दिया जा सकता है l
वही नैनो यूरिया नैनो तकनीक से बना यूरिया है जो नाइट्रोजन का मुख्य स्रोत है l नैनो यूरिया के माध्यम से पर्णीय छिड़काव (पौधों की पत्तियों पर सीधे उर्वरक या कीटनाशकों का छिड़काव करना।) के द्वारा सीधे तौर पर फसलों में नाइट्रोजन दी जाती है l अतः इसके छिड़काव के लिए लीफ कैनोपी (फसलों की पत्तियों और शाखाओं का ऊपरी, घना आवरण) का होना बहुत आवश्यक है ताकि पतियों के छिद्र( स्टोमेटा) एवं शाखाओं के छिद्र(क्यूटिकल्स) के माध्यम से नाइट्रोजन आसानी से ले सके l
चौड़ी पतियों वाली फसलों ( चना, सरसों, सोयाबीन आदि ) में 30-35 दिन एवं सकरी पतियों वाले फसलों (गेहूं, मक्का आदि ) में 35 से 40 दिन पर 5 मिली लीटर प्रति लीटर पानी के साथ मिला कर नाइट्रोजन दी जा सकती है नैनो यूरिया की 500 मिली लीटर की एक बोतल का एक एकड़ में छिड़काव किया जा सकता है नैनो उर्वरकों के छिड़काव के लिए इफको द्वारा प्रतापगढ़ जिले में 5 ड्रोन दिए गए है जिसके माध्यम से कम लागत एवं समय में उर्वरकों का छिड़काव किया जा सकता है छिड़काव करवाने के लिए किसान इफको किसान उदय एप्लीकेशन में ऑर्डर लगा सकता है
रासायनिक उर्वरकों के उपयोग को कम करने के लिये सरकार पीएम प्रणाम यानी कृषि प्रबंधन हेतु वैकल्पिक पोषक तत्त्वों का संवर्द्धन (Promotion of Alternate Nutrients for Agriculture Management Yojana- PM PRANAM) चला रही है l
उद्देश्य – जैव उर्वरकों , जैविक उर्वरकों ,नैनो उर्वरकों एवं अन्य गैर सब्सिडाइज्ड के संयोजन के साथ उर्वरकों के संतुलित उपयोग को प्रोत्साहित करना।
योजना की विशेषताएँ:
इस योजना का कोई अलग बजट नहीं होगा और उर्वरक विभाग द्वारा संचालित योजनाओं के तहत “मौजूदा उर्वरक सब्सिडी की बचत” के माध्यम से वित्तपोषित किया जाएगा।
सब्सिडी बचत का 50% उस राज्य को अनुदान के रूप में दिया जाएगा जो पैसा बचाता है।
योजना के तहत प्रदान किये गए अनुदान का 70% गाँव, ब्लॉक और ज़िला स्तर पर वैकल्पिक उर्वरकों और वैकल्पिक उर्वरक उत्पादन इकाइयों के तकनीकी अपनाने से संबंधित परिसंपत्ति सृजन के लिये उपयोग किया जा सकता है।
शेष 30% अनुदान राशि का उपयोग किसानों, पंचायतों, किसान उत्पादक संगठनों और स्वयं सहायता समूहों को पुरस्कृत करने तथा प्रोत्साहित करने के लिये किया जा सकता है जो उर्वरक उपयोग को कम करने व जागरूकता पैदा करने में शामिल हैं।
एक वर्ष में यूरिया के रासायनिक उर्वरक उपयोग को कम करने की गणना की तुलना पिछले तीन वर्षों के दौरान यूरिया की औसत खपत से की जाएगी।
इस उद्देश्य के लिये, उर्वरक मंत्रालय के डैशबोर्ड, एकीकृत उर्वरक प्रबंधन प्रणाली (Integrated Fertilizer Management System-IFMS) पर उपलब्ध डेटा का उपयोग किया जाएगा।
योजना की आवश्यकता:
सरकार पर सब्सिडी का बोझ:
किसान अपनी सामान्य आपूर्ति-और-मांग-आधारित बाज़ार दरों या उनके उत्पादन/आयात की लागत से कम अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) पर उर्वरक खरीदते हैं।
उदाहरण के लिये, नीम लेपित यूरिया की MRP सरकार द्वारा 5,922.22 रुपए प्रति टन तय की गई है, जबकि घरेलू निर्माताओं और आयातकों को देय इसकी औसत लागत-प्लस कीमत क्रमशः लगभग 17,000 रुपए और 23,000 रुपए प्रति टन है।
शेष भाग, जो संयंत्र-वार उत्पादन लागत और आयात मूल्य के अनुसार भिन्न होता है, केंद्र द्वारा सब्सिडी के रूप में रखा जाता है, यह अंततः कंपनियों को जाता है।
गैर-यूरिया उर्वरकों का अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) कंपनियों द्वारा नियंत्रित या तय किया जाता है। हालांकि उचित मूल्य सुनिश्चित करने के लिये केंद्र इन पोषक तत्त्वों पर एक समान प्रति टन सब्सिडी का भुगतान करता है।
विभिन्न प्रकार के उर्वरकों के लिये प्रति टन सब्सिडी 10,231 से 24,000 रूपए है। ।
केंद्र सरकार प्रत्येक संयंत्र में उत्पादन लागत के आधार पर उर्वरक निर्माताओं को यूरिया पर सब्सिडी का भुगतान करती है और इकाइयों को सरकार द्वारा निर्धारित अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) पर उर्वरक बेचना आवश्यक है।




